________________ विक्रम चरित्र द्वितीय--भाग 216 जाओ और बिजौरा हाथ में रखे हुए जो कोई हो उन्हें पकड़ कर यहाँ ले आओ। राजा की आज्ञा प्राप्त कर प्रसन्न होकर वह चौकीदार वहाँ से. निकलकर माणिकचौक पर गया / क्योंकि 'पतिव्रता स्त्री अपने पति की, नौकर स्वामी की, शिष्य गुरु की, पुत्र पिता की आज्ञा में यदि संशय करें तो वे अपने व्रत को खण्डित करते हैं। .. इधर वे चोर लोग दूसरे दिन की शाम को वहाँ आये / और अपने रात्रि में मिले हुए 'प्रजापाल' नाम के बन्धु की राह देखने लगे / इसी समय काक का शब्द सुनकर शब्द ज्ञानी कहने लगा कि काक कहता है कि 'तुम लोग शीघ्र यहाँ से भाग चलो तुम लोगों को पकड़ने के लिये लोग रहे हैं। तव अन्य तीन चोर कहने लगे कि हे भाई ! अभी तुम चुप होजात्रो, रात में यदि तुम्हारी बात मानी होती तो रत्न की पेटी कैसे मिलती ? अभी यदि यहां से चले जायेंगे तो पुनः वैसा अपूर्व निडर बन्धु कैसे मिलेगा ?' इस प्रकार के विचार कर वे लोग प्रसन्न होकर उसकी राह देखने लगे। ___इसके बाद चौकीदार ने जब हाथ में बीजोरा वाले मनुष्यों को देखा तो उन्हें पकड़ कर ले जाने लगा। __ तब वे चोर लोग कहने लगे कि 'तुम पूरा धन हम लोगों से ले लो और हम लोगों को छोड़ दो, अथवा हमारे घर में जो वृद्ध हैं वे राजा के समीप आयेंगे। - चौकीद.र कहने लगा कि राजा की हमें ऐसी ही आज्ञा है कि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust