________________ विक्रम चरित्र द्वितीय-भाग 217 ज्यों ही वह मणियों को देखने के लिये कोश गृह के बीच में गया तो पांच रत्न पेटियाँ चुराई हुई देखकर वह सोचने लगाकि 'जिसने इन पेटियों की चोरी की है वह बहुत बलवान है इसलिये मैं भी एक. पेटी को गायब कर राजा के समीप जाकर पेटियों के चुराये जाने के समाचार सुनाऊगा।' इस प्रकार सोचकर उसने अत्यन्त ऊचे स्वर में कहा कि किसी ने भंडार की दिवार तोड कर रत्न की पेटियां चुरा ली हैं। चौकीदार ! सिपाहियों ! शीघ्र दौडो !! ____ इसके बाद कोषाध्यक्ष सहित सब लोगों ने वह स्थान देखा और वे लोग राजा के आगे जाकर कहने लगे कि रत्न की पेटियां चोराई गई हैं। ___राजा ने कहाकि 'चौकीदार ! तुम नगर की रक्षा नहीं कर रहे हो तथा चोरों को नहीं पकड़ रहे हो / इसलिये तुम लोगों को ही चोरी का दण्ड देना होगा।' - इसके बाद चौकीदारोंने समस्त नगर में स्थान-स्थान पर खोज की। परन्तु जब चोर कहीं भी नहीं मिले तो उदास होकर घर में आकर बैठ गये। ___ तब एक चौकीदार की स्त्री ने पूछा कि 'तुम्हारा मुख उदास क्यों है ? / तब चौकीदार ने रत्न पेटी की चोरी हो जाने के सब समाचार सुना दिये और महाराजा ने आज फरमाया है कि 'चारी का दण्ड. तुम लोगों को देना होगा इसीलिये आज मुख उदास है / "कायर कभी न होइये-कायरता बेकाम . धीर बनो आपत्ति में-धीरज ही आराम ||" स्त्री कहने लगी कि 'तुम हृदय में कुछ भी दुःख न करो। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust