________________ 214 साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजयजी संयोजित विक्रमादित्य सोचने लगा कि अभी इन लोगों को तलवार से मार दूं। पुनः सोचने लगा कि व्यर्थ ही इन लोगों को मार डालना अच्छा नहीं / पहले गुप्त रूप से इन लोगों का चरित्र देख लेना चाहिये / पीछे युक्तिपूर्वक अपना कार्य करूगा / क्योंकि जो काम पराक्रम से नहीं हो सकता उसको उद्योग या कोई उपाय से करना चाहिये जैसे कौवे न सुवर्ण के हार से कृष्णसर्प को भी मार दिया था। विक्रमादित्य का चोरों के साथ चोरी करना इसके बाद राजमहल का किला आदि उलांघ करके राजा के महल में जाकर राजा ने चोरों से धीरे धीरे कहा कि 'हे गन्ध ज्ञानी ! इस महल में क्या है ? वह तुम ठीक 2 बताओ / ' - तब उसने गन्ध से जान करके कहाकि 'इस घर में पितल, ताम्र आदि बहुत हैं दूसरे में चांदी तथा तीसरे में सुवर्ण और चतुर्थ में रत्न राशि है / इस प्रकार सब कुछ उसने बता दिया। ... तब राजा ने कहाकि अपन कोटिमूल वाले मणि का ही हरण करेंगे / इसलिये हे ताले को स्पर्श से ही खोल देने वाले ! तुम ताला को हाथ से स्पर्श कर खोल दो / तब उसने स्पशे से ही ताले को क्षण भर में खोल दियः / पश्चात् उसमें चोरी करने के लिये वे लोग प्रवृत्त हो गये / उस समय बाहर सियालियों ने शब्द किया / उस शब्द को सुनकर शब्द ज्ञानीने कहाकि यह सियाल कहता P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust