________________ विक्रम चरित्र द्वितीय--भाग 213 लगा कि 'तुम लोगों ने ठीक ही कहा है / परन्तु यदि तुम लोगों की रुचि होतो मैं भी साथ साथ चलू ?' ___ तब उन लोगों ने कहाकि 'भाग देने से चोरी में कोई कमी नहीं होती। इसलिये तुम भी हमारे साथ ही चलो; अब तो हम लोग राजा के महल में ही चलेंगे।' ___चोर रूप में रहे हुए हुए राजा ने पूछा कि 'तुम लोगों में क्या क्या शक्ति है ? एक चोर कहने लगाकि 'मैं गन्ध से घर के भीतर की वस्तुओं को जान जाता हूँ। दूसरा कहने लगाकि 'मैं हाथ से स्पर्श करते ही अत्यन्त मजबूत ताला तथा कपाटी को खोल देता हूं या कमल के नाल के समान तोड़ देता हूं।' _____ तीसरे चोरने कहाकि 'मैं जिसका शब्द एक बार सुनता हूं उसको सौ वर्ष तक और उनके बाद भी उसे शब्द द्वारा पहचान लेता हूँ। चौथा चोर, कहने लगाकि 'मैं सब पशु पक्षियों की भाषा जानता हूं।' - वे चारों चोर कहने लगे कि 'तुम्हारे में कौनसी शक्ति है ?? तब वह चोर रूप में रहा हुआ राजा कहने लगाकि 'मैं जिसके बीच में रहता हूँ, उसको राजा से कोई भी डर नहीं रहता है।' तव प्रसन्न होकर चोरों ने कहाकि 'तुम भाग्य से मिल ही गये Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.