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________________ 212 साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजयजी संयोजित समय किस प्रयोजन से कहां जाते हो ? उन चोरों ने कहा कि 'आज हम लोगों ने मेघश्रेष्टी के घर में विदेश से आये हुए बहुत धन को देखा है। इसलिये हम लोग उसका हरण करने के लिये जायेंगे | क्योंकि हम चोर है और धन चाहते हैं / तुम कौन हो ? तथा किस प्रयोजन से कहां जाते हो ?' ___ तब राजा ने कहाकि 'मैं प्रजापाल नामका संसार प्रसिद्ध चोर हूँ। मैं आज राजा का कोष देख आया हूं। जो तैल मूग आदि वेचकर कष्ट से धन इकट्ठा करता है उसका धन हरण करने से निश्चित शीघ्र ही मृत्यु हो जाती है / क्योंकि जो कोई किसी को मारता है तो मरनेवाले को एक क्षण ही दुःख होता है / परन्तु धन का हरण करने से तो पुत्रपौत्र के साथ साथ जीवन पर्यन्त उसको कष्ट होता है / परन्तु राजा के घर में तो बिना परिश्रम के ही बहुत धन प्राप्त होता है / इसलिये उसको धन चोरने से अल्प दुःख होता है। / तब चोरों ने कहा-हे चोर ! तुमने सत्य कहा है / इसलिये अब हम लोग राजा के घर में ही चोरी करने के लिये जावेंगे।' राजाने कहा--'चोरी के धनमें तुम चारों का ही भाग है या दूसरे का भी ? ला : तब चोरों ने कहा कि 'विक्रमादित्य का व्यवहार बहुत कठिन है / इसलिये मस्तक के कटने के भय से उसके चौकीदार आदि कोई भी चोरी में सहाय नहीं करते हैं। विक्रमादित्य जो इस समय चोर के रूप में था वह कहने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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