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________________ विक्रम चरित्र द्वितीय-भाग 211 NNN लोगों से 'कर' लेने वाला, परन्तु चोरों से रक्षण नहीं करने वाला राजा चोरी के पाप से युक्त होता है / इस प्रकार स्मृति में कहा है।" विक्रमादित्य का वेष परिवर्तन कर चोरों को पकड़ने के लिये निकलना ये सब विचार करके राजा तलवार लेकर अकेला ही रात्रि में चोरों को पकड़ने के लिये घर से बाहर चल दिया / क्योंकि सिंह शकुन, चन्द्रबल अथवा धन-सम्पत्ति नहीं देखता है / वह एकाकी भी लक्ष्य से भिड जाता है, क्योंकि जहा साहस है वहां सिद्धि भी प्राप्त होती है। - राजा गुप्त रूप से भ्रमण करता हुश्रा माणिकचौक में पहुँचा और विचारने लगा कि प्रायः चोर यहां अवश्य आते रहते होंगे। वह राजा धीरे धीरे चलते रत्नचौक में पहुंचा तो पीछे से आते हुए मनुष्यों को देख कर विचारने लगा कि 'यदि पाते हुए चौकीदार मुझको नहीं पहचान कर प्रहार कर बैठे तो मेरी क्या गति होगी ?? फिर बाद में ये आने वाले चोर ही हैं ऐसा हृदय में निश्चय करके राजा ने भी अपने आपको चोर रूप बनाकर चोर का जैसा नाम रख लिया। विक्रमादित्य का चार चोरों से मिलन इसके बाद जब वे सब चोर उस चौक पर आकर एकत्रित हो गये और राजा से मिले तब राजा ने पूछा कि तुम लोग इस P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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