________________ 210 साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजयजी संयोजित पुण्यकार्य का भङ्ग, अपकीर्ति ये सब विक्रमादित्य के राज्य में कभी भी नहीं होते थे। ____एक समय कुछ चोर नगर में रात को चोरी किया करते थे परन्तु दिन में धनिकों-सा वेष धारण करके नगर में फिरा करते थे। सुवर्ण बाजार, मणि बाजार और वस्त्र बाजार के लोग आकर राजा से कहने लगे कि चोरों ने हमारा बहुत सा धन चुरा लिया है। इस पर राजा ने चोरों को पकड़ने के लिये सब चौराहों पर चौकीदारों को नियुक्त किया। परन्तु बहुत अन्वेषण करने पर भी चोर पकड़े नहीं जा सके। इसके बाद राजा सोचने लगा कि सामथ्ये रहने पर भी यदि राजा पीडित होती हुई प्रजा का रक्षण नहीं करता है तो उसका नरक में पतन होता है / क्योंकि दुर्बलों का, अनाथों का, बाल वृद्ध, तपस्वी तथा अन्याय से पीडितों का राजा ही रक्षक है / अर्थात् एकमेव राजा ही इन लोगों का आधार है / कहा भी है "राजा जनता से कर लेकर, चोरों से रक्षा नहीं करे। स्मृति कहती है तब वह राजा उसी पाप से कभी मरे / / ॐ लोकेभ्यः करमादाता चौरेभ्य स्तान्न रक्षिता / वदीयलिप्यते राजा पातकैरितिहि स्मृतिः // 1352 / / 8 P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust