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________________ 'विक्रम चरित्र द्वितीय-भाग 206 करते समय चोर के मन के परिणाम बड़े मलीन होते हैं। इस कारण से चोर को अशुभ कर्मों का बंध होता है और इह लोक में भी चोर दण्ड पाते हैं सब लोग उनका तिरस्कार करते हैं। ७-पर स्त्री सेवन-जिसका नाति जाति और धर्म दृष्टि से विधिपूर्वक लग्न-विवाह हुआ हो उसको छोड़कर और सब स्त्रियाँ माँ-बहन के समान तथा छोटी बहन वेटी के समान समझनी चाहिये / परायी स्त्री के प्रति बुरी दृष्टि से देखना भारी पाप है। जैसे अपनी खुद की बहन, बेटी के प्रति दूसरा कोई आदमी बुरो दृष्टि से देखे तो अपने को बुरा लगता है; उसी तरह और के लिये भी समझना चाहिये / ___ उपरोक्त सातों व्यसनों से दूर रहने के लिये महाराजा विक्रमादित्य अवसर अवसर पर अच्छी अच्छी शिक्षा दायक कहानियों एवं भजन आदि का प्रचार कराया करते थे जिससे प्रजा सदा अपना जीवन उच्च बना सके। महाराजा स्वयं भी इन सातों व्यसनों से सदा दूर रहते थे / मानों सारे मालव देश से ही ये सातों व्यसन भाग कर दूर चले गये थे। - महाराजा विक्रमादित्य के राज्य में नीति का उल्लंघन, असत्य का आरोपण, परचक्र का आगमन तथा प्रजा का पीड़न ये सब नहीं होते थे, देवता की प्रतिमा का भङ्ग, वर्णव्यवस्था का भंग, Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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