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________________ विक्रम चरित्र द्वितीय--भाग 207 माल हा 1 जुआ खेलना, 2 मांस खाना, 3 मदिरा पान करना, 4 शिकार खेलना-करना, 5 वैश्यागमन करना, 6 चोरी करना, और पर स्त्री सेवन करना; ये सात व्यसन जगत में अतिशय घोर नरक को देने वाले हैं। व्यसन उन्हें कहते हैं जो आत्मा को आपत्ति में डालें, या आत्मा के सद्गुणों को ढक देवे, अर्थात् आत्मा का कल्याण न होने देवे / बुरी आदत को भी व्यसन कहते हैं। व्यसन सेवन करने वाले व्यसनी कहलाते हैं और वे संसार में बुरी दृष्टि से देखे जाते हैं। १-जुआ खेलना-रुपये-पैसे और कोड़िये वगैरह से मूठ खेलना और हार-जीत करते हुए शर्त लगाकर कोई काम करना, वह जूा कहलाता है / जुआ खेलने वाले जुआरी कहलाते हैं। जुआरी लोगों का हर जगह अपमान होता है / अपनी जाति के लोग भी उनकी निंदा करते हैं और सरकार उन्हें दंड देती है। २-मांस भक्षण-जीवों को मारकर अथवा मरे हुए जीवों का कलेवर खाना मांस खाना कहलाता है। मांस खाने वाले हिंसक और निर्दयी कहलाते हैं। ३-मदिरापान-शराब, भांग, चरस, गांजा वगैरह नशीली चीजों का सेवन करना मदिरा पान कहलाता है। इनके. सेवन करने वाले शराबी और नशेबाज कहलाते हैं / शराबियों को धर्म-कर्म और भले बुरे का कुछ भी विचार नहीं रहता और P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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