________________ 206 साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित NANNo चौरासी दीपकों का कारण पूछा। ____ तब श्रेष्ठी कहने लगाकि 'हे राजन् ! मेरे घर में यह आचार है कि जितनी स्वर्ण मुद्राएँ मेरे घरमें रहे उतने ही दीपक रहते हैं / इसलिये रात्रि में घर पर मैं चौरासी दीपक जलाता हूं। अतः आप मुझपर क्रोध न करें।' तब राजाने हंसकर कहाकि 'तुम अभी तक कोटीश्वर नहीं हुए. इसका मुझ को खेद है यह कहकर राजाने कोषाध्यक्षको बुलाकर सोलह लाख सोना मोहरे उसको और दिलाई / क्योंकिः_ "सज्जन पुरुष एक वे ही हैं जो स्वार्थ छोड़कर परोपकार में तत्पर रहते हैं / वे सामान्य व्यक्ति हैं जो अपने स्वार्थ के साथ साथ परोपकार करते हैं / वे मानव राक्षस तुल्य है जो अपने स्वार्थ के लिये दूसरे के हित को नष्ट करते हैं / परन्तु जो मनुष्य बिना प्रयोजन दूसरे के हित को नष्ट करते हैं उनको तो अधमाधम ही कहना उचित है / इसके बाद राजाविक्रमादित्य की कृपा से वह , श्रेष्ठी कोटीश्वर होगया। तथा राजा भी अपने नगरको इस प्रकार समृद्ध देखकर ठात्यन्त प्रसन्न हुआ। अपने शत्रुओं को जीतकर देश से सात व्यसनों को निकाल दिया / चे सात व्यसन ये हैं: * एके सत्यपुरुषाः परार्थनिरताः :स्वार्थ परित्यज्य ये, में सामान्यास्तु / परार्थमुद्यमभृतः स्वार्थाविरोधेन ये ! तेऽमि मानव. राक्षसाः परहितं स्थार्थायनिघ्नन्ति ये, .. यतु ध्नन्ति निरर्थक परहितं ते के जानी महे // 1341 / / 8 10 0 /ActunrairattiM.S. JunGuidaladhak prush