________________ 202 साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित के लिये एक सुखी पिता-पुत्र की तरह प्रजा को प्रेम की दृष्टि से देखना चाहिये / अगर राजा क रता से प्रजा को देखेगा तो प्रजा. भी राजा से असंतुष्ट होकर सदा दुःखी रहेगी / विक्रमादित्य का वेश-परिवर्तन कर नगर निरीक्षण राजाने 'कहाकि हे मंत्रीश्वर मैं सब बातों की परीक्षा करना चाहता हूं। ऐसा कहकर सभा विर्सजन की / एक समय वेष बदल कर नगर बाहर ईख के खेत में गया / ईख की रक्षा करने वाली एक वृद्ध स्त्री से राजा कहने लगा कि 'हे माता मैं बहुत प्यासा हूं। इसलिये मुझको थोड़ा ईख का रस पीने के लिये दो / ' तब वह स्त्री एक ईख को हाथ में लेकर उससे बोलीकि 'हे भाई मैं ईख का रस निकालती हूं, तुम अपना हाथ नीचे रखो और ईख का रस पीओ। उस ईख रस को पीकर राजा का पेट भर गया / तथा महल में जाकर मन्त्रीश्वर को ये सब समाचार कह सुनाया और महाराजा मन में सोचने लगाकि "ईख के अन्दर भरपूर रस होता है और उससे अच्छी आमदनी भी होती है तथापि खेतका मालिक राज्य कर नहीं दे रहा है तो अब से ईख के खेत पर राज्य कर डालना चाहिये / अथवा ईख के खेत का पालक मुझको कुछ नहीं देता है इसलिये ईख के खेत का हरण कर मैं ले लूगा।” ऐसा विचार कर कर भाव से वेष बदल कर पुनः दूसरे 'दिन उसी ईख के खेत में गया, और ईख के खेत की मालिका से P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust