________________ विक्रम चरित्र द्वितीय भाग बयाँलीसवाँ प्रकरण "नर जन्म पाकर लोक में, कुछ काम करना चाहिये ! अपना नहीं तो पूर्वजों, का नाम करना चाहिये / / " एक दिन महाराजा विक्रमादित्य अपने सभी सामन्तों के साथ राज्य-सभा में विराज रहे थे। आपने अपने सभी राज्य कर्मचारियों से अपनी प्रजा के दुःख-सुख की बात पूछी / साथ ही आपने अपने सुयोग्य मंत्री भट्टमात्र से भी यही प्रश्न किया / आपने अपने मन्त्री भट्टमात्र से यह भी पूछा कि 'हे मंत्रीश्वर ! कोई भी राजा अपनी प्रजा को किस प्रकार सुखी रख सकता है ? राजाको अपनी प्रजा के सुख के लिये क्या क्या करना चाहिये ? तुम इस पर सविस्तार प्रकाश डालो !' मंत्रीश्वर ने उत्तर दिया:--हे राजन् ! राजा और प्रजाका सम्बन्ध पिता-पुत्र का है / अतः जिस प्रकार पिता अपने पुत्र को सुखी रखने के लिये उसके साथ प्रेम का व्यवहार करता है तो प्रेम वश वह पुत्र अति प्रसन्न रहकर पिताकी प्रत्येक आज्ञा का पालन करने हेतु सदा तैयार रहता है। अगर पिता जरा भी क रता वश होकर पुत्र को डांटता-फटकारता है तो उसके उत्तर में पुत्र भी पिता की ओर उसी भाव से करता का प्रदर्शन कर हठ और ढीटाई दिखाता है। अतः हे राजन् ! राजा को भी अपनी प्रजा को सुखी रखने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust