________________ 200 साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित कारण शास्त्रकारों ने 'विश्वासघात-महापाप' नामक उक्ति को महानता दी है। हमें वास्तव में किसी भी प्राणी के साथ कभी भी विश्वासघात न करने का प्रयत्न करना चाहिये / पाप का भयंकर फल हरप्राणी को भोगना ही पड़ता / किसी कविने ठीक ही कहा है: "बाबा जग में श्रायके बुर न करना काम / बन्दे मौज न पावसी, बिरथा हो बदनाम // " आगे महाराजा विक्रमादित्य की अपूर्व उदारता का हाल आप इस प्रकरण में पढ़ गये हैं और महाराज को समुद्र का अधिष्ठायक सिंधु देव की ओर से महान महिमा वाले रत्नोंका तनिक मोह मनमें न रख दीन हीन श्रीधर ब्राह्मण को चारों ही रत्न देकर उदारता का परिचय दिया इस से भहारांजा की दानशीलता का पूर्ण परिचय मिलता है / - अब पाठकगण आगामी प्रकरण में राजा द्वारा प्रजाकी गुप्त रूपसे रक्षा के लिये रात्री को नगर चर्चा देखने निकलना इत्यादि रोमांचकारी हाल पढ़ेगे। SE P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust