________________ विक्रम चरित्र-द्वितीय भाग 166 - इस प्रकार जब कुटुम्ब में कलह होने लगा और एक मता नहीं हो सका तब ब्राह्मण ने विक्रमादित्य महाराज को अपने कुटुम्ब के सब कलह का हाल कह सुनाया। राजा अत्यंत प्रसन्न होकर उन चारों को संतुष्टि के लिये तत्काल वे चारों रत्न ब्राह्मण को दे दिये / इस प्रकार याचकों को मन की इच्छानुसार दान देता हुआ राजा विक्रमादित्य दृसरे कर्ण के समान विश्व में विख्यात दानी हुआ / एक संसार के अनुभवि कवि ने ठीक ही ललकारा है. "तुटेकु संधाइए, रुठेकु मनाइए, भुखेकु जीमाइए, बहोत सुख पाइए।" पाठकगण ! इस प्रकरण के अन्दर राजा नन्द की रोमांच कहानी का हाल पढ़ चुके हैं। जिसमें राजा नन्द द्वारा किये अविचार पूर्ण गुरु हत्या का आदेश दिया जाना तथा मंत्री बहुश्रुत द्वारा बुद्धिमान से गुरु शारदानन्दन को युक्ति पूर्वक बचाना आदि, तथा विजयपालक राजकुमार द्वारा वानर के साथ विश्वास घात का प्रसंग उपस्थित होकर अन्त में उसका पागल होना तथा उसी गुरु शारदानन्दन के द्वारा पुनः ठीक होना इस कारण से पुत्र की स्वास्थ्यता के कारण राजा नन्द का प्रसन्न होना / राजकुमार विजयपाल के द्वारा वानर के साथ किये गये विश्वासघात से पाठक गणों को बोध होना परमावश्यक है तथा वानर जैसे पशु द्वारा शरण में आये हुए का पालन करने जैसी अद्भुत उदारता का भी बोध होना नितान्त आवश्यक है इसी --- P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust