________________ 'विक्रम चरित्र-द्वितीय भाग कहने लगाकि 'मुझको प्यास लगी है इसलिये शीघ्र तुम मुझको ईख रस पीने के लिये दो / ' तब वह बुड्डी एक ईख को हाथ में लेकर उसका रस निकालती हुई बोली कि 'भाई हाथ नीचे रखो .. और रस पीओ / ' परन्तु बहुत प्रत्यन करने पर भी उनमें से कल की अपेक्षा बहुत कम रस निकला। ' तब विक्रमादित्य ने पूछाकि 'हे माता कल ही मैंने एक ईख. में से बहुत सा रस पीया था / आज उतना रस क्यों नहीं निकल रहा है , स्त्री ने कहाकि 'कल तक राजाकी दृष्टि अच्छी थी और आज शायद् राजा की दृष्टि क्रूर होगई होगी।' महल में जाकर ये सब समाचार राजाने मन्त्री से कहे / , तब भट्टमात्र ने कहाकि 'हे राजन् ! यह सौम्य दृष्टि का प्रत्यक्ष चमत्कार देखो / ' राजाने कहाकि हे भट्टमात्र ! तुम्हारा कथन सत्य और निःशंक है / इसके बाद राजाने कहाकि 'लकड़ियां बेचने वालों को मारने. की मेरी इच्छा है।' 5. भटट ने कहाकि उन लोगों की भी ऐसी इच्छा होगी / फिर वेष बदल भट्टमात्र और राजा दोनों बाहर निकलकर लकड़ी बेचने वालों को देखकर मंत्रीने कहाकि, राजाविक्रमादित्य आज मर गया है / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust