________________ 'आया अंत में काली नामक दासी को वहां भेज कर वरदान के शब्द कहलाये. वह सुनकर कालिदास प्रसन्न हुए. वहां राजकुमारी आयी, देवी कालिकाने प्रत्यक्ष होकर कालिदासी का वचन प्रमाण किये. ग्वाला महान कवि कालिदास हुवे. प्रकरण 48 . . . . . . . . . . . . पृष्ट 334 से 353 - महाराजा विक्रम का देशाटन के लिये जाना. .. महाराजा विक्रम अपने साथ पांच रनो लेकर पद्मपुर में आये, वहां उनहोंने प्रथम दृष्टि से एक तापस को निलोभी मान कर अपने रत्न उस की पास रखने को गये. तापसने हा ना किया, पर अन्त में महाराजा वहां रत्न छोडकर चले. महाराजा भ्रमण करके वापस आये, और जहां तापस की मढुली थी वहां एक आलिशान मकान देखा, तापस को भी देखा, उस की पास जा कर महाराजाने अपने रत्नों के लिये कहा, तापसने इन्कार किया. महाराजा मंत्री और राजा के पास फरियाद करने चले, पर उनहों की चाल देख कर निराश हुए, अपने रत्नों की सहिमलामती दिखाई नहीं. . कामलता वेश्या से महाराजा का मिलन हुवा. दोनों ने मत्रणा को और तापस के पास जाने का समय ठीक कर लिया. पूर्व संकेतानुसार प्रथम महाराजा तापस के पास आये और अपने रत्न के लिये मांग कि, उसी समय कामलता वेश्या थाल में रत्नों लेकर आई और तापस को अपनी पुत्री जल कर मर रही है इस से अपनी सारी संपत्ति भेट करनी है इत्यादि कहने लगी, तापस संपत्ति के मोह में पडा, और महाराजा विक्रम के पांचो रत्न देकर अपनी प्रतिष्ठा रखने का प्रयास किया. महाराजाने एक रत्न तापस को भेट किया, उसी समय कामलता की दासी आई और कहा, " आप की पुत्रीने जल कर मरने का P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust