________________ तृतीय भागः-सर्ग दवा पृष्ठ 311 से 455 .................... प्रकरण 47 से 55 प्रकरण 47 . . . . . . . . . . . . पठ 311 से 333 कवि कालिदास का इतिहास : परदुःखभजन न्यायी महाराजा विक्रमादित्य को प्रिय गुमजरी नामक पुत्री थी. उस को वेदगर्भ नामक विद्वान पढाते थे, एक दिन वेदगर्भ दूर से आ रहे थे उस समय प्रिय गुमंजरीने उनका उपहास किया. वेदगर्भ से यह सहन न हुवा, और शाप दिया, वह शाप विधिने उन्हों के हाथों से पूर्ण करना निर्मित किया था. पुत्री के लग्न विषय में चिन्तित महाराजाने वेदगर्भ को सुंदर वर की खोज करने को कहा, वेदगर्भने वह मजूर किया, प्रस्थान किया, कई दिनों के बाद एक ग्वाला के परिचय में आये, उन को वे लेकर आये और उन को राजसभा में कम से बोलना, चलना, बैठना वगरैह शिखाया. ___ एक दिन उस को लेकर वेदगर्भ सभा में आया. वह ग्वाला स्वस्ति कहेना भूल गया और उपरट बोल गया. वेदगर्भ ने उसका अर्थ -रहस्य समजाया, महाराजा वहुत प्रसन्न हुवे-आखिर में वह ग्वाला की. साथ राजकुमारी का लग्न हुवा. दिनों के बाद अपना पति मूर्ख है वह राजकुमारी जान गई. . ग्वाला को भी अपनी मूर्खता के लिये दुःख हुवा और काली माता की उपासना करने चला, उपासना करने पर देवी प्रसन्न न हुई. राजाने चिन्तित होकर देवी को प्रसन्न करने का प्रयत्न किया. किन्तु परिणाम शुभ नहि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust