________________ विचार छोड दिया है." यह सुनकर दासी को रत्न मरा थाल देकर तापससे कहा, 'वापिस आती हूँ.' यह कह कर कामलता चलती हुई. महाराजा विक्रमने बुद्धिमति कामलता को एक रत्न भेट किया और जो तीन रत्नों पास थे वे मार्ग में गरीव को दे दिये. प्रकरण 49 . . , . . . . . . . . . प. 354 से 364 नया राम बनने की आकांक्षा ___ महाराजा विक्रमादित्य राम जैसा राज करते है, असा मन में सोचते अपने को नया राम कहलाने चाहते थे. मंत्रीगणने महाराजा को ये आकांक्षा छोडनेको कहा पर भानभुले महाराजाने एक भी न सुनी-न मानी, आखिर में उनका गर्व दूर करने को अयोध्या से विद्वान को बुलाया, उसने महाराजा को अपने साथ अयोध्या चलने को समजाये, और महाराजा थोडे राजकर्मचारीओं के साय अयोध्या चले, वहां ब्राह्मणने श्री रामचन्द्रजी की प्रजावात्सल्यता दिखाने के लिये जमीन खुदवाई, उस में से एक रत्नजडित मोजडी मीली, महाराजाने उस को छाती से लगाई. वह मोजडी थी चमारन की-पद्मा चमारन की. विद्वान ब्राह्मणने उसकी कथा सुना कर महाराजा का गर्व दूर किया. प्रकरण 50 . . . . . . . . . . . . पृ. 365 से 378 विधाता से महाराजा का मिलन पृथ्वी पर्यटन करते हुवे महाराजा चैापुर नगर में आये. उस दिन धनशेठ के वहां उत्सव हो रहा था. महाराजा उत्सव का प्रयोजन जान कर शेठ के वहां गये, रात को विधाता से मिलन हुवा. भाग्य के लेख जान लिया, और वह बालक की शादी में आने का निर्णय कर लियास्वीकार लिया. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust