________________ विक्रम चरित्र-द्वितीय भाग राजा विक्रमादित्य की अपूर्व दानशीलता-. इस प्रकार आश्चर्यकारक 'बहुश्रुत' मंत्री की कथा सुनकर राजा ने प्रसन्न होकर, उसको कोटि स्वर्ण मुद्रा देने की आज्ञा कोषाध्यक्ष को करदी और साथ ही कोषाध्यक्ष को यह भी कहा कि कोई भी याचक मेरे दर्शन के लिये आवे तो उसको एक हजार सोना मोहर दे दें, और जिसके साथ मैं वार्तालाप करू उसको एक लाख सोना मोहर तथा जिसको मैं इनाम देने को कहू उसको कोटि सोना मोहर दे दिया करें / इस प्रकार राजा विक्रमादित्य ने जगमें अनन्तदानशीलता की ख्याति प्राप्त की। इसके बाद एक दिन राजा द्वारा आयोजित दान पुण्य के उत्सव में अनेक देशों से निमंत्रित बड़े-बड़े व्यक्ति आये / उस समय अठारह प्रकार की प्रजा को राज्य-कर से मुक्त कर दिया गया और दिक्पालों को बुलाने के लिये अपने चतुर दूतों को भेज दिये। ___ सिन्धु देव को बुलाने के लिये भेजा गया 'श्रीधर' नाम का ब्राह्मण समुद्र के तीर पर जाकर समुद्र की स्तुति करने लगा कि 'हे जलाधिप ! मैं तुम्हारी स्तुति क्या करू, क्योंकि संसार के पोषण करने वाले मेघ भी तुम्हारे यहां याचक हैं / तुम्हारी शक्ति का क्या कहना ? तुम ही लक्ष्मी के उत्पत्ति स्थान हो / तुम्हारी महिमा मैं क्या बोल। क्योंकि जिसका द्वीप महीनामसे प्रसिद्ध है। तुम्हारी शक्ति का वर्णन कैसे करू / क्योंकि जिसके क्रोध से सारे संसार का प्रलय ही हो जाता है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust