________________ 164 साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित * सहित राजा उसको खोजने के लिये वनमें चल दिया / अनुचरों ने राजकुमार को पागल के समान 'विसेमेरा' इत्यादि शब्द बारम्बार बोलता देखा। - अतः यह भूत आदि से डर गया है यह उन्हें निश्चय हो गया। उस पागल राजकुमार को राजा के समीप ले आये। उसे देखकर राजा अत्यन्त दुःखी हुआ। इसके बाद अनेक प्रकार के उपचार करने तथा कराने पर भी जब राजपुत्र को कुछ भी लाभ नहीं हुआ। तव राजा बोलाकि 'यदि मैंने शारदानन्दन गुरु का वध कराया न होता तो वह मेरे पुत्र को शीघ्र ही स्वस्थ कर देता / ' इस प्रकार राजा अपने अविचार से किये गये कार्य पर पश्चाताप करने लगा। तब मन्त्री ने शारदानन्दनगुरु से ये सब वृतान्त कह सुनाया / और शारदानन्दन की कही हुई उक्ति राजा से आकर इस प्रकार कही कि 'हे राजन् ! मेरी एक पुत्री है जो सर्व शास्त्रों में पारंगत है / वह मंत्रों के द्वारा आपके पुत्र को स्वस्थ कर देगी। - इसके बाद पर्दे के अन्दर एक भाग में कन्या वेषधारी शारदानन्दन को और दूसरे भाग में राजा आदि सब लोगों को मन्त्री ने बैठाया। राजाने कहाकि-हे पुत्री मेरे पुत्र को स्वस्थ करदो। तब वह कन्या वेषधारी शारदानन्दनगुरु इस प्रकार श्लोक * कहने लगा किः-- विश्वासप्रतिपन्नानां वञ्चने का विदग्धता। कमारुहय सप्तहि हन्तु किं नाम पौरुषम् / / 1208 / /