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________________ विक्रम चरित्र-द्वितीय भाग 163 राजकुमार वानर को गोद में लेकर बैठा / तव व्याघ्र कहने लगा कि 'हे राजपुत्र ! मुझको इस समय बहुत भूख लगी हुई है इसलिये यह वानर मुझको देदो और तुम सुखी होजाओ।' तब राजकुमार ने मन में सोचाकि 'इस वानर को खाकर व्याघ्र अपने स्थान को चला जायगा और मैं अपने स्थान चला जाऊंगा।' इस प्रकार सोचकर उस स्वार्थी राजकुमार ने अपनी गोद से उस वानर को नीचे गिरा दिया। ___ बाघ के मुख में गिरता हुआ वह वानर हंसकर चालाकी पूर्वक शीघ्रता से पुनः राजपुत्र के पास पहुँचा और वहां जाकर अत्यन्त करुण स्वर से रोने लगा। ___ व्याघ्र ने पूछा कि 'हे वानर ! यहां भयस्थान में आकर तुम क्यों हंसे और मित्र के समीप जाकर इस प्रकार क्यों रोते हो ? वानर ने कहा कि 'हे बाघ ! मित्र द्रोह के पाप से यह मेरा मित्र नरक में जायगा / इसीलिये मैं रो रहा हूं और कोई कारण नहीं / ' यह बात सत्य है-ऐसा कहकर व्याघ्र निराश होकर अपने स्थान को चला गया / फिर बाद में राजकुमार को वानर ने 'विसेमेरा' इत्यादि पाठ सिखा दिया हो इस तरह राजकुमार पागल की तरह 'विसेमेरा' शब्द को ही सतत बकते बकते जंगल में घूमने लगा। .. . . इधर राजकुमार का. 'अश्व' व्याघ्र के डर से अपने नगर में जाकर 'हेषा' रव करने लगा / राजपुत्र से शून्य घोड़े को देखकर सब राजपरिवार अत्यन्त चिंतातुर होगया / नौकर चाकर सहित P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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