________________ 162 साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित * अत्यन्त वेग में किये गये कार्यों से विपत्ति आने पर उसका परिणाम शूल के समान हृदय में पीड़ा देने वाला होता है। राजा पर नयी आपत्ति- इसके बाद एक दिन राजपुत्र विजयपालक शिकार खेलने के लिये वनमें गया / वह अशिक्षित अश्व पर आरूढ होकर मृग के पीछे वनमें दौड़ते 2 बहुत दूर निकल गया जब अपने सब सेवक बहुत पीछे रह गये तब व्याघ्र को आते हुए देखकर भयसे भय त होकर वह वृक्ष पर चढ़ गया / उस वृक्ष पर व्यंतराष्टित एक बानर था / उसने कहा 'हे राजकुमार ! अब कुछ भी डरो नहीं / हम दोनों के यहां रहने पर यह व्याघ्र हम लोगों को क्या कर सकता है ?' इस प्रकार वह राजपुत्र और वानर दोनों मैत्री भाव को प्राप्त करके वृक्ष पर बैठे हुए थे / वह व्याघ्र भी उसी वृक्ष के नीचे उपरोक्त दोनों को खाने की इच्छा से बैठ गया। * जब सोते हुए राजकुमार को गोद में लेकर वानर बैठा था तब उस व्याघ्र ने कहाकि 'हे वानर ! मुझको बहुत भूख लगी है। इसलिये राजपुत्र को नीचे गिरा दो जिसको खाकर मैं सुखी होजाऊं और चला जाऊ / ' वानर ने कहाकि 'इस समय यह मेरे आश्रय में है अतः मैं इसे नहीं गिरा सकता हूँ। तब व्याघ्र ने कहाकि 'मनुष्य जिसका आश्रय लेते हैं उसीके घातक होते हैं।' इसके बाद जब राजकुमार जगा और वानर सोने लगा तो