SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विक्रम चरित्र-द्वितीय भाग . "वैद्य, गुरु, मन्त्री ये सब जिस राजा के प्रिय बोलने वाले ही रहते हैं, वह राजा शरीर, धर्म, कोष भंडार से शीघ्र ही क्षीण होजाता हैं तथा निम्र वस्तुओं से कुछ दूर रहने पर अधिक फल देने वाले होते हैं:-जैसे राजा, अग्नि, गुरु, स्त्री, इन सबका सेवन मध्य भाव से करना चाहिये / अर्थात् इनके अत्यन्त समीप रहने से स्वयं को नुकसान पहुंचाने वाले होते हैं। .. तब राजाने कहाकि 'हे मंत्रिन् ! तुमने ठीक कहा परन्तु मैं राणी के बिना एक क्षण भी यहां नहीं रह सकता हूँ / ' तब मंत्री ने कहाकि 'हे स्वामिन् ! श्राप रानीजी का एक सुन्दर चित्र / बनवाकर सभा में समीप रखो / ' इस प्रकार मंत्री के कहने पर राजा ने चित्र बनाने वाले को अपनी स्त्री को दिखलाया और चित्रकार ने उसका आबेहूब चित्र बना दिया / ____इसके बाद राजाने अपनी रानी के चित्र को शारदानन्दन गुरू को दिखाया / तब गुरु ने कहा चित्र में रानी के जानु साथल के भाग में जो तिल का चिह्न है सो इस चित्र में नहीं दिखाया है। यह आश्वर्य कारक वचन सुन राजा मन ही मन चकित होकर किसी और की सलाह लिये बिना हो व्यभिचारी की आशंका से क्रुद्ध होकर शारदानन्दन गुरु को मारने का कार्य गुप्तं रुप से 'बहुश्रु त' मंत्री को सौंपा और मंत्री ने दीघ विचार कर गुरु को भूगर्भ में छिपा दिया। इसलिये कहा है कि पण्डितों को अच्छा या बुरा काम करते समय उसके परिणाम-फल की चिन्ता अवश्य करनी चाहिये, क्योंकि - " ' Jun Gun Aaradhakrish P.P.AC.Gunratnasuri M.S
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy