________________ 188 साहित्यप्रमो मनि निरञ्जनविजय संयोजित बनवाया था। पूर्व काल में अनेक राजा, धनाढ्य व्यक्तियों ने बहुत द्रव्यों का व्यय करके अनेक प्रासाद बनवाये थे। .... / इसके बाद महाराजा विक्रमादित्य ने शत्रुज्जय तीर्थ में श्रेष्ठ कीर काष्ठकों से प्रासाद का उद्धार करवाया / फिर बादमें वहां से प्रस्थान करके राजा विक्रमादित्य सकल संघ के साथ श्री नेमिनाथ प्रभु को प्रणाम करने के लिये गिरनार महातीर्थ पर आये। वहाँ भाव भक्ति पूर्वक स्नात्र पूजा, ध्वजारोपण, आदि कार्य करके हर्ष पूर्वक श्री नेमिनाथ भगवान की अनेक प्रकार से स्तुति करने लगे। इस प्रकार विस्तार पूर्वक दोना महातीथों की यात्रा करके राजा विक्रमादित्य उत्सव के साथ वापस अवन्तीपुरी में लौटा / श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरीश्वर जी से धर्म कथाओं का श्रवण करते हुए अपने जन्म को सफल बनाया। उत्तम साहसिकों में अग्रणी, राजा विक्रमादित्य न्याय माग से पृथ्वी का पालन करते हुए, दान धर्म में सदा परायण रहने लगा। . . विक्रमादित्य की राजसभा में एक दीन मनुष्य का आना... एक दिन सभा में एक गरीब मनुष्य को आये हुए देखकर तथा कुछ बोलतेहुए नहीं देखकर राजा सोचने लगाकि स्खलित गति, दीन स्वर, खिन्न गात्र, अत्यन्त भय-ये सब जो मरण के ...चिन्ह हैं, वे ही चिन्ह याचक में भी होते हैं / इसके बाद दयार्द्र होकर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust