SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग wwwwwwwwwwwww देने वाले तुम्हारे मुख को देखकर मैं कृतार्थ हो गया हूं। हे सुवर्ण के समान शरीर कान्ति धारण करने वाले प्रभो! मुझको अपने चरणों में स्थान दो", इस प्रकार की स्तुति बड़े भक्ति भाव से की / प्रभुदर्शन, चैत्यवंदन आदि करके सूरिश्वरजी के साथ मन्दिर व्यवहार के चोक में आये ! .... .. कई प्रसादों को जीर्ण और कुछ भाग गिरा देखकर राजा विक्रमादित्य ने श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरीश्वरजी से कहा कि 'हे गुरू देव, क्या ये प्रासाद गिर जायेंगे ?' श्री शत्रुञ्जय पर मंदिर का जिर्णोद्धार-... - आचार्य श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरीश्वरजी ने कहा कि 'हे राजन् ! श्री जिनेश्वरदेवों ने नवीन जिन मन्दिर बनाने का अपेक्षा जीर्णोद्धार में आठ गुना अधिक पुण्य शास्त्रों में कहा है। कई लोग बड़े 2 नये मन्दिर अपनी ख्याति के लिये बनवाते हैं। कोई पुण्य के लिये तथा कोई कल्याण के लिये बनवाते हैं / परन्तु नवीन मंदिर बनाने की अपेक्षा जीर्णोद्वार में इससे आठ गुणा अधिक फल प्राप्त होता है। जीर्णोद्धार से बढकर जिन शासन में दूसरा कोई भी पुण्य कार्य नहीं है / पूर्व काल में इस महातीर्थ पर महाराजा चक्रवर्ती भरत ने श्री ऋषभदेव भगवान का मणि और चांदी मय भव्य प्रासाद बनवाया था। तथा द्वितीय चक्रवर्ती राजा सगर ने इस तीर्थ पर श्री आदिनाथ भगवान का भव्य मन्दिर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy