SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विक्रम--चरित्र द्वितीय भाग 183 गोचर होते थे / जय-जयकार के नारों से समस्त आकांश मंडल गूज उठता / इन जयकारों के आगे श्री संघ के आगे चलने वाले वाद्य समूह के बाजों की आवाज भी कमजोर पड़ जाती थी! . वास्तव में यह संघ वर्तमान काल का एक अपूर्व आदर्श था / धन्य है उन धर्म प्रेमियों को जिन्होंने इस असंवभ कार्य को भी संभव कर अपने साथ-साथ अनेक धर्मानुयायियों को धर्म का 'लाभ, प्रभू दर्शन का लाभ, साधू समाज के दर्शन तथा संघ के दर्शन का लाभ देकर उनका जीवन अपने साथ 2 सफल बनाया। __ पाठक गण ! वर्तमान काल में जबकि आज कल जगह 2 धर्म विरोधी भावना को उत्तेजना दी जारही है, अनेक पापाचार पनप रहे हैं वैसे समय में भी इस प्रकार के महान् धर्म कार्य करने व कराने वाले होते हैं तो भला वह भारत का स्वर्ण युग तो विश्व विख्यात है जबकि भारत सोने की चिडिया कहलता था। वैसे समय में अगर विक्रमादित्य जैसे महाराजा का एक महान् 'विशाल संघ इस प्रकार का हो तो कोई नवीन व आश्चर्य जनक बात नहीं। आशा है आप अब अपने मन में तनिक भी सन्देह को स्थान न देकर विक्रमादित्य महाराजा के सघ समूह को कल्पित न मानेगे। - इसके साथ-साथ अगर आजकल के भी भारत के पूर्व उत्सवों की ओर तथा मेलों आदि की ओर भी दृष्टि डाली जाय तो वह जानकर भी हमें रोमांच हुए बिना नहीं रहेगा / * .. *. भारत का प्रथम स्वतन्त्रता दिवस, गणतन्त्र दिवस, महात्मा गांधी के अग्नी संस्कार का दृश्य, भारत के प्रसिद्ध कुम्भ P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy