________________ विक्रम-चरिज द्वितीय भाग 181 देव श्री विजयनेमि सूरीश्वरजी म. सा० आदि अनेक सूरीश्वरजी सह परिवार विराजते थे / इस श्री संघ में पूज्य श्री सागरानंद सूरिजी, श्री मोहन सूरिजी. श्री मेघ सूरिजी आदि करीबन 800 सौं साधु-साध्वीजी महाराज का समुदाय साथ था / आचार्य देव. शाम प्रतिक्रमण, व्याख्यान आदि होता। . . दूसरे भाग में भोजनालय था / यहां करीब 20,000 व्यक्तियों का भोजन होता था। पास ही में अलग स्थान पर तपस्वियों के भोजन की व्यवस्था थी जैसे कि आम्बील एकासना श्रादि / भोजनालय के पास ही बड़ी पवित्रता के साथ जल व्यवस्था थी। गरम और शीत दोनों प्रकार का जल नियत समय पर तैयार मिलता। जल स्थान के ठीक पीछे की ओर स्नानागार था जहां से एक सीधा मार्ग जिन मन्दिर की ओर जाता। ताकि स्नान कर लोग पूजा का लाभ ले सके / - विश्राम स्थान के मध्य भाग जो कि 'माणक चौक' के नाम से प्रसिद्ध था; उसके चारों रास्तों पर बाजार लगता / प्रत्येक वस्तु के नियमित भाव से मिलने की व्यवस्था थी। पास ही डाकखाना और बैंक के तम्बू लगे थे। और उनके पीछे की ओर उनके कर्मचारियों के निवास के तबू थे ! विशाल संख्या से जुड़ा हुआ मुंबई का "श्री स्वयं सेवक मडल" भी अच्छी तरह यात्रीगण की सेवा करते थे। . .... .... . - किनारे पर राजकीय पुलिस के तंबू थे / नियत समय के अनु P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust