________________ -विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग.. . 177 बाहर की बात है / परन्तु पाठक गणों को तो इसका कुछ न कुछ रसास्वादन कराना आवश्यक है / अस्तु ! .. .. . . ____ जिस समय श्री विक्रमादित्य महाराजा का संघ प्रथम प्रयाण कर राज्य महल से निकला उस समय के जन समूह की गणना करना तो प्रायः असंभव ही प्रतीत होता है / सबसे आगे संघ में सुमधर ध्वनी वादन करते हुए अनेक प्रकार के वाद्य कलाकारों का समूह अनेक प्रकार की पोशाकों में सुसज्जित होकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए चल रहे हैं / उनके पीछे राज्य की चतुरगीनी सेना जो राजकीय सैनिक पोशाक में पंक्ति बद्ध बड़े मान के साथ अपने हथियारों सहित ठाट से चल रही है / ठीक सेना के बाद ही अनेक.पूज्याचार्य साधू समुदाय, अपने त्यागमय जीवन का प्रदर्शन करते हुए. बड़ी शांति से चलते नजर आ रहे हैं। . इसी साधू समाज के पीछे अनेक राजा, महाराजा, सामत, श्री मत तथा अन्य प्रजा-जन बड़े विशाल समूह में दिखाई दे रहे हैं। इसी समूह में और साधू समाज के ठीक पिछे के भाग में संघपति महाराजा विक्रमादित्य दिखाई दे रहे हैं / महाराजा के गले में पुष्पहारों का ढेर लगा है ! केवल पुष्प-हारों के बीच महाराजा का मुख पूर्णिमा के चांद की भांति सुशोभित हो रहा है और सिर पर का मुकुट चंद्रमा की कलाओं की पूर्ति कर रहा है। : .. ..: महाराजा के हाथों में रत्न जड़ित श्रीफल सुशोभित हो रहा Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.