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________________ 174 साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जन विजय संयोजित जंगम तीर्थचलता फिरता कल्पवृक्ष है / कल्पवृक्ष तो उसके पासमें जाने वाले व्यक्ति को ही इच्छित फल दे सकता है। परन्तु गुरू साधु भगवंत तो साक्षात् जंगम कल्पवृक्ष के समान है, उनके पास जाने वालोंको तो धर्मोपदेश रूप-ज्ञान फल अवश्य मिलता है / जिससे प्रत्येक प्राणी उस उपदेशके पालन से अपने भूत, भविष्य और वर्तमान के पापों से मुक्ति प्राप्त कर लेता है / इसके अलावा जो प्राणी छोटेबड़े गांवों में बसते हैं उनके गांवों में जा जाकर, अनेक शारीरिक कष्ट भोगकर, हर प्राणी को धर्मोपदेश देने हेतु स्वयं साधु जन वहां पहुंचते हैं और उन प्राणियों को जाग्रत करते है / इससे इन प्राणियों को भी धर्म का ज्ञान हो जाता है और धर्माराधन कर ... ये प्राणी जन्म-जरा और मरणके भय कर कष्टों से छुटकर, मोक्ष धाम रूप परम शांति को प्राप्त कर सकते है / इसीलिए स्थावर कल्पवृक्ष तुल्य स्थावर तीर्थों से शास्त्रोंमें जंगम तीर्थ स्वरूप साधु "जन की अधिक महिमा बताई गई है।" ____ इस प्रकार महाराजा विक्रमादित्य की आग्रह पूर्ण भक्ति भाव से विनंती सुनकर पूज्य श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरीश्वरजी महाराज ने भी श्री संघ के साथ आने की महाराजा को अनुमति दी / इससे महाराजा और भी अधिक उत्साहित हुए / पूज्य श्री सिद्धसेनदिवाकर सूरीश्वरजी की ओर से संघ के साथ आने की स्वीकृति जानकर महाराजा, मंत्री मडल एवं धर्म प्रेमी जनता अत्यत प्रसन्न हुई / बाद में सकल संघ को एकत्र कर श्री चतुर्विध संघ के सामने महातीर्थ श्री शत्रुजय की यात्रा करने की अपनी * P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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