________________ 27 योगिनिया और क्षेत्रपालने उमादेवी का बलिदान लिया, भागे हुए महा-- राजा विक्रम और सब कोई श्रीपुर नगर में आ पहूँचे. मानवहीन नगर देखते देखते महाराजा राजमहेल में जा पहूँचे. वहां राजकुमारी चन्द्रावती से मिलन हुआ. उसने भी राक्षस की जुलम कथा सुनाई, उसी से महा.. राजाने राक्षस का मृत्यु का उपाय भी जान लिया, राक्षस जब पूजा में बैठा था उसी समय महाराजाने उस का 'वज्रदंड' लेकर उस का नाश किया अग्निवैताल की सहायता से श्रीपुर नगर के राजा और प्रजा को वहां लाई गई, महाराजाने प्रेम से महाराजा विक्रमादित्य के साथ अपनी पुत्री का लग्न किया. महाराजाने अग्निवैताल को भेज कर उमादेवी का समाचार मंगवाया.. समाचार जानकर पंडित और छात्र को बहुतसा द्रव्य देकर संतुष्ट किये.. वज्रदड, सर्व रसदंड और राजकन्या के साथ महाराजा अवती पहूँचे. प्रकरण 46 . . . . . . . . . . . . पष्ट 286 से 310. मंत्रीश्वरका देशनिकाल व महाराजा का पाताल प्रवेश नागदमनी के कहेने से महाराजा मंत्री मतिसार के कुटुंब अवती से दूर करते हैं, किन्तु मंत्रीकी छोटी पुत्रवधू अपनी होशियारी से दुःख के समय में आश्वासनरूप होती है, फिर भी भाग्य अपना रंग जमाता है, दु खी को दुःख ही मिलता है. एक दिन नागदमनी के कहेने से महाराजा विक्रम मतिसार मंत्री को बुलाने को जाते है. वहां पर पटह का शब्द सुन कर मंत्री को स्पर्श करने को कहेना, और इन्द्रजालिक की बनाई हुई वाटिका को फूल युक्त करना. ए देख कर राजा अपनी पुत्री विश्वलोचना का लग्न महाराजा. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust