________________ मारीको भेजा, राजकुमारी तीर लेकर वापस आई. और आगे प्रयाण किया, वे लक्ष्मीपुर के उद्यान में पहूँचे. महाराजा वन में ही राजकुमारी और रत्नपेटी को छोड कर भोजन सामग्री लेने को नगर में गये, उसी समय रूपश्री वेश्या वहां आई. कपट कर राजकुमारी और रत्नपेटी को अपने घर ले गई, उस को वेश्या जीवन जीने को कहा, बाद में कोटवाल के पुत्र को सौंप दी, राजकुमारी झरुखे में बेठी थी उस समये बिल्ली चुहे को ले जा रही थी, उस को कोटवाल पुत्रने मीट्टी को ठेला मारा और * अपनी बहादुरी का गुणगान गाने लगा. राजकुमारी को उस पर नफ़रत आई, और जल कर मर जाने का निर्णय किया, रूपश्री महाराज के पास दौडी, राजकुमारी जलने जा रही थी, वहां महाराज आये उसको समझाने लगे, वहां महाराजा विक्रम आ पहूँचे, राजकुमारी और महाराजा विक्रम का मिलन हुआ, परिचय-लग्न वेश्या को अभयदान देकर रत्नपेटी लेना और अवतीगमन. प्रकरण 45 . . . . . . . . . . . प. 264 से 285 उमादेवी नागदमनी के कहने से महाराजा सोपारक' नगर में सोमशर्मा के वहां छात्र रूप से रहने लगे, और सोमशर्मा की पत्नी उमादेवी का चरित्र देखने लगे. उमादेवी के पास ‘सर्व रस दड' होने से वह देवसभा में जाती थी. - महाराजा विक्रमने अग्निवैताल की सहायता से उसके पीछे जाकर सब कुछ सुना-देखा, दुसरे दिन गुरु से कहा और गुप्त रूप में वृक्ष में बिठाया. सोमशर्माने भी सब कुछ देखा-सुना और आगे क्या करना उस की मंत्रणा महाराजा विक्रम के साथ की, कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन क्षेत्रापालने जयसा कहा था वयसा उमादेवीने किया. बलिदान देनेकी तैयारी की. महाराजा विक्रम सर्व रस दंड को लेकर भागे, उन के पीछे सब कोई भागे. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust