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________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग 167 ज्योतिषी लोग 'ग्रह का दोष' बतलाते थे / मन्न जानने वाले भूतका उपद्रव' कहते थे / मुनिजन पूर्व जन्म के 'कर्म परिणाम' कहते थे / केवलज्ञानी श्री गुणसूरिजी महाराज का आगमन__ इसी समय में उस नगर के उद्यान में श्री गुणसूरिजी संसारी प्राणियों को प्रबोध देने के लिये बिहार करते हुए पधारे / तथा उद्यानपालकफे मुख से सूरिजी का आगमन सुनकर राजा पुत्र वधू तथा पुत्र के साथ वन्दना करने के लिये वहां आये / सूरिजी महाराज ने देशना दी कि "पिता, माता, स्त्री, मित्र, पुत्र, स्वामी, सहोदर आदि इन सबसे धर्म श्रेष्ट है, धर्म नित्य है / यह मृत्यु होनेपर भी साथ जाता है; दुःख को नष्ट करने वाला है / परन्तु माता, पिता, आदि ऐसे नहीं हैं। प्राणियों के लिये धर्म महा मंगल कारक है। यह समस्त पीड़ाओं को नष्ट करने वाला है। माता के तुल्य है तथा समग्र अभिलाषाओं को पूरा करने वाला है / यह पिता के तुल्य है / नित्य हर्ष देने वाला है दान मित्र के तुल्य है। विपत्ति को नाश करने वाला है / शील-सुख को देनेवाला है / तप-शीघ्र पाप रूपी कीचड़ सुखाने के लिये आतप (धूप) के तुल्य है / सद्भाव ना-संसार का नाश करने वाली है।' इस प्रकार की धर्म देशना सुन लेने के बाद राजा ने पूछाकि "हे भगवन् ! मेरा पुत्र और पुत्रवधू किस दुष्कर्म के प्रभावसे नहीं बोलते हैं ? यह बताइये / " .. तब श्री गुणसूरिजी कहने लगे कि नहीं बोलने का कारण कहने पर दोनों ही गृहत्याग कर के संसार रूपी समुद्र को पार करने मुनि वाला व्रत धारण कर लेंगे।' P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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