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________________ 168 : साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित / राजा ने कहाकि "हे ज्ञानी गुरुदेव ! जो होना है वह होगा! परन्तु ये दोनों बोलने लगें ऐसा उपाय कीजिये / " मुनि द्वारा पुत्र व पुत्र-वधू का पूर्व-जन्म का वृतान्त तब श्री गुणसूरिजी कहने लगे कि "पहले इन दोनों के पूर्व जन्म का समाचार सुनों / पूर्व समयमें भीमपुर में शूर नामका एक अत्यन्त न्यायी राजा था / उसने शत्रु के वीरपुर नाम के नगर को भग्न किया तथा शत्रु पर विजय प्राप्त की थी। परन्तु कोई भट (सैनिक) सोम नामके श्रेष्ठी का रूप लावण्य वाले तीन वर्ष की अवस्था वाला धीर नामका पुत्र और दो वर्ष की अवस्था वाली वीरमती नामकी कन्या दोनों को लेकर अपने नगर को चला गया। तथा बात सा द्रव्य लेकर दोनों को कमलश्रेष्ठी को दे दिया / क्रमशः युवावस्था होने पर उन दोनों का विवाह करा दिया। वहां एक समय श्री धर्मघोप नामके ज्ञ। ये उनको प्रणाम करने के लिये कमल अपनी प्रिया के साथ वहां गया / उनका उपदेश सुनकर कमल ने पूछा कि "हे स्वामिन् ! इन दोनों-धीर और वीरमती का परस्पर किस प्रकारअधिकप्रेम होगया ?" तब उस जन्म का भाई बहन का सम्बन्ध बतलाने पर उन दोनों ने सुन्दर वन में जाकर तथा श्री आदिनाथ देव को प्रणाम करके और गृह का त्याग करके दीक्षा लेली / बाद में तीव्र तपस्या करके दोनों स्वर्ग को गये / इसके बाद स्वर्ग से च्युत होकर वे दोनों तुम्हारे पुत्र तथा पुत्र वधू हुए हैं / जातिस्मरण ज्ञान हो जाने के P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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