________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित में के प्रभाव से उस रानी को देवपूजा आदि की जो जो शुभ च्छायें होती थीं राजा उन्हें अच्छी तरह से पूर्ण करता था समय पूर्ण होने पर एक दिन शुभ मुहू त में सौभाग्यवती ने एक हुत सुन्दर बालक को जन्म दिया / राजाने जन्मोत्सव करके उस बालक का 'मेघ कुमार' नाम रखा / * वह बालक पञ्चधात्रियों से स्तन्नपान आदिसे पालित कर द्वितीया के चन्द्रमा के समान प्रतिदिन बढने लगा / क्योंकि छलता, गिरता, आनन्द दायक हँसता, लालाको गिगता हुआ सा पुत्र किसी किसो धल्या स्त्री के गोद में ही खेलता है। फिर राजा ने उस मेघकुमार को पढ़ाने के लिये लेखशाला में भेजा / वह पण्डित से धर्म, कर्म, आदि के अनेक शास्त्र ढ़ने लगा। क्योंकि आहार, निद्रा, भय, मैथुन ये सब तो पशु और [नुप्य में समान होते हैं / मनुष्य में ज्ञान ही एक विशेष है। शान से होन मनुष्य पशु के समान ही है। - इसके बाद चन्द्रपुर के राजा चन्द्र भूप की सुन्दरी मेघवता मकी कन्यासे शुभ मुहू तमें मेघकुमारका विवाह किया गया / ना वर और वधू सुन्दर वनमें श्री आदिनाथ जिनेश्वर प्रभु को णाम करने के लिये गये। परन्तु श्री आदिनाथजी की मूर्ति देखकर दोनों वधू और वर मूति होगये / शीतल उपवारों से स्वस्थ रने पर भी वे दोनों बोलते नहीं थे / राजाने मन्त्र-तन्त्र आदिसे हुत उपचार किया / परन्तु स्त्री सहित मेषकुमार कुछ भी नहीं ला / वैद्य लोग कफ, पित्त तथा 'वायु का विकार' कहते थे। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust