________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग 165 राजाअरिमर्दनका सौभाग्यवती सहित अपनेनगरमें आना इसके बाद उस राजकन्या से विवाह करके राजा अरिमर्दन मेही की सहायता से रत्नपुरी में आगया / वहां मेही द्वारा की गई भक्ति से प्रसन्न होकर राजाने मेही को लक्ष्यमूल्य वाले चार मणि रत्न दिये तथा उससे प्रेमपूर्वक मिल कर चलता हुआ तथा तीर्थों की वन्दना करता हुआ अपने नगरके उद्यान में आया / मन्त्री ने नगर में तोरण आदि लगाकर सब प्रकार से नगरको सुसज्जित किया / जब अच्छे मुहूर्त में वाद्य आदि के साथ राजा नव विवाहिता स्त्री सहित नगरक राजमार्ग पर जा रहा था तब वाद्य का शब्द सुनकर रानी सहित राउ ५खन के लिये सब पुरुष तथा स्त्रियां अपना अपना कार्य जोड़कर मार्ग में एकत्रित होने लगे / अत्यन्त उत्सुकता के कारण कोई एक ही नेत्र में अञ्जन कर के, कोई आधे मस्तक में ही केश वेश करके, . कोई आधे मुख को ही मण्डित करके स्त्रियां वहां देखने के लिये शीघ्रता से आने लगी / राजा पदपद में दान देता हुआ, गीत, नत्य के साथ अपनी पत्नी सहित राजमहलमें पहुंचा / इस प्रकार सौभाग्य शाली राजा और रानी; दोनों का चन्द्रमा और. रोहिणी तथा शिव पार्वत जैसा सुन्दर योग हुआ इस तरह लोग मानने लगे। . . इसके बाद एक दिन स्वप्न में सूचना देकर कोई बहुत बड़ा पुण्यशाली जीव शुभ घड़ी में सौभाग्यवती के गर्भ में आया / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust