________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरुजनविजय संयोजित अरिमर्दन राजाका नरद्वपिनी सौभाग्यवती के साथ विवाह____ राजा रत्नकेतु अपनी प्यारी राजकुमारी का पुरुष संबंधी द्वषभाव नष्ट हुआ देखकर बहुत प्रसन्न हुआ, बाद में राजा अरिमर्दन रत्नकेतु से प्रेम पूर्वक मिलकर चलने लगा तब राजकन्या, कहने लगी कि “पूर्व जन्म में यह मेरा पति था इसलिये इस जन्म . में भी यही मेरा पति हो, अन्यथा अग्नि ही मेरा पति होगा।" तब . अत्यन्त आग्रह करके राजा रत्नकेतु ने अच्छे उत्सव के साथ अपनी कन्या भी राजा अरिमर्दन को दे दी / कहा है कि "धन, सौभाग्य, पुत्र, राज्यासन, धर्म सभी कुछ देता है। दुर्लभ स्वर्ग मोक्ष भी-मानव, धर्मों का फल लेता है।" .."धन की अभिलाषा वालों को धन देने वाला, इच्छित . चाहने वालों को इच्छानुसार देने वाला, सौभाग्य चाहने वालों : को सौभाग्य देने वाला, पुत्र की चाहना वालों को पुत्र देने वाला; राज्यार्थियों को राज्य देने वाला सत्य धर्म ही है। कितनी बातें बताई जायें, जगतमें कौन ऐसी वस्तु है जो धर्म नहीं देता ? यह अत्यन्त अलभ्य स्वर्ग और मोक्ष का भी देने वाला है ?"* ... * धर्मोऽयं धनवल्लभेषु धनदः कामाथिनां कामदः / सौभाग्यार्थिगु. तत्प्रदः किमपर पुत्रार्थिनां पुत्रदः // राज्यार्थिष्वपि राज्यदः किमथवा नानाविकल्पैर्नृणाम् / तत्कि यन्न ददाति किं च तंनुते स्वर्गापवर्गावपि // 1140 // 8 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust