SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग 163 लिया / परन्तु वनमें अचानक दावानल लग गया / दावानल लगते हुए देख कर, चटक ने कहा कि 'हे चटकी ! जल लाकर इस घोंसले पर छिटको अन्यथा यह भी जल जायगा / बार बार कहने पर भी जब वह दुष्ट आशयवाली चटकी न उठी और न बोली ही बल्कि निश्चिन्त होकर बैठ गई / तब चटक श्री आदिनाथ प्रभुका ध्यान करता हुआ घोंसले पर जल सिंचने लगा। तब तक दावानल घोंसले तक पहुँच गया और वह चटक वहीं मृत्यु को प्राप्त हुआ। अरिमर्दन का ऐसा वृत्तान्त सुनकर राजा की कन्या विवारने लगी कि-'यह क्या मिथ्या बोलता है / मैंने तो इससे विपरीत ही पूर्व भवमें देखा था / ' सच ही कहा है कि 'अज्ञान से आवृत जीव, हित अथवा अहित, कुछ भी नहीं जानता है। जैसे धतूरा खाये हुए मनुष्य संसार को स्वर्णमय पीला समझते हैं। ऐसा विचारते हुए राजकन्याने कहाकि-'हे राजन् ! मिथ्या क्यों बोलते हो ? जलाशय से जल लाकर घोंसले को मैंने सिंचा था। - राजकन्या के ऐसा कहने पर अरिमर्दन ने तत्काल उत्तर दिया “नहीं मैंने सींचा था / " इस प्रकार दोनों, परस्पर अनेक प्रकार के विवाद करने लगे / अन्त में राजकन्याने पर्दे को हटाकर . जब राजा के मुख को देखा तब जैसे सूर्य से अन्धकार नष्ट हो जाता है उसी प्रकार उस राज कन्या का पुरुषों में जो द्वष भाव था वह नष्ट हो गया / Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy