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________________ 162 साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित . "जल में शीतलता ही रस है, पर घर भोजन में आदर / प्रसन्नता रस वनिता जनमें, मित्रों का रस प्रम प्रखर // "" जल का शीतल होना ही रस है, दूसरे के अन्न में आदर ही रस है, स्त्रियोंमें आज्ञापालन ही रस है, मित्रों का वचन ही रस है / ______ नर द्वषी पुत्री के गृहमें ही उस अरिमर्दन राजाको विश्राम करने के लिये रत्नकेतु ने स्थान दिया / बाद में रत्नकेतुने पूछा कि 'हे राजन ! तुमको स्त्रियों से द्वेष क्यों है ? तब अरिमर्दन कहने लगा कि 'मुझको ऐसा पूर्व जन्म से ही है।' पुनः रत्नकेतु राजा ने अरिमर्दन राजा से अाग्रह पूर्वक कहा कि 'हे राजन् ! आप कृपा कर अपना पूर्व भव संबंधी वृतांत सुनाईये तब आग्रह वश होकर राजा अरिमर्दन अपना पूर्व भव सुनाइने लगा / कौतुक से नरोपिणी राजकुमारी भी गुप्त रूप से ' समीप में बैठ कर राजा का पूर्वभव सुनने लगी। ....... अपने पूर्व भव का वृतान्त सुनाते हुए राजा अरिमर्दनने कहाकि 'मलयाचल पर्वत पर चटक और चटकी दोनों अपनी इच्छा से रहते थे। तथा जल-पुष्प आदि से वे दोनों अपने कल्याण के लिये जिनमन्दिर में श्री आदिनाथ जिनेश्वर प्रभुकी पूजा करते थे। - एक दिन चटक ने कहा कि 'हे चटकी ! अब हमको घोंसला बना लेना चाहिये / चटकके इस प्रकार अनेक बार कहने पर भी जब चटकी ने कुछ नहीं माना और न कुछ किया ही; तब चटक ने वृक्ष पर अत्यन्त कष्ट सहन कर एक घोंसला बना P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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