________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरुजनविजय संयोजित सावधान होकर युद्ध करने के लिये नगरसे बाहर निकला / ... इधर अरिमर्दन राजासे शिक्षित, उसके सेवकने, रत्न केतु राजा : को कहा कि-'अत्यन्त धर्मात्मा अरिमर्दन नामका राजा परदेशसे यहां यात्रा करने के लिये आया है। वह स्त्रियों को देखता तक नहीं है और स्त्रियों के वचन भी नहीं सुनते हैं यदि कोई स्त्री उसे देखले तो वह तत्काल हो मृत्यु को प्राप्त करेगा।' . . यह बात सुनकर राजा रत्नकेतु ने कुछ शांति अनुभव की और अरिमर्दन के पड़ाव पर गया / उस समय राजा अरिमर्दन - श्री आदिनाथ प्रभु की उत्तम पुष्प, गन्ध, अक्षत आदि से अष्ट प्रकार से पूजा कर रहा था / पूजा करने के बाद दोनों राजा आपस में बड़े प्रम से मिले। ____ रत्नकेतु राजा ने राजा अरिमर्दन से पूछा-'आप सेना सहित कहां और किस हेतु से अभी जा रहे हैं ?' ____ इस पर अरिमर्दन कहने लगाकि-'मैं संसार भव भ्रमण से छूट कारा पाने के लिये, श्री जिनेश्वर देव की यात्रा करने के लिये यहां * आया हूँ / ' क्योंकि तीर्थ के मार्ग की धूलि के स्पर्श मात्र से भी / लोग निष्पाप हो जाया करते हैं तथा तीर्थ में भ्रमण करने से :: संसार भ्रमण दूर हो जाता है, तीर्थ में द्रव्य व्यय करने से स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है / श्री जिनेश्वर देव की पूजा करने से लोग पूज्य होते हैं / ध्यान से हजार पल्योपम, अभिग्रह से : लक्ष पल्योपम और तीर्थ के मार्ग में चलने से सागरोपम प्रमाण Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.