________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग आये हो ?" ब्राह्मण ने उत्तर दिया कि “मैं बहुत दूरसे तुम्हारे नगर का सुन्दर स्वरूप सुनकर उसे देखने के लिये आया हूं।" . ___ तब राजाने कहाकि “आप ! रत्न के प्रासादों से शोभायमान इस नगर का भला प्रकार देखो।" तव ब्राह्मण ने कहाकि--"-मुझको यह नगर देखने में मेरी यह कन्या साथ रहन से घूमने में बाधा रूप होती है, क्योंकि इसको साथ लेकर मैं इधर-उधर कैसे घूम सकता हूँ? और मुझे. शहर देखने की तीव्र इच्छा है परन्तु क्या किया जाय ? इसलिये यह कन्या तब तक आपके अन्तःपुर में रहे जबतक मैं नगर को न देख लू। - तब राजा की आज्ञा से कन्या को अन्तःपुर में छोड़कर वह ब्राह्मण प्रसन्न होकर नगर को देखने के लिये बाजार में चल दिया / वह कन्या अन्तःपुर में प्रहेलि प्रश्न आदि से यहां की. राजकुमारी का इस प्रकार से मनोजन करने लगी कि जिसने वह राजकुमारी इसके साथ व.त ही स्नेह करने लग गई। . इसके बाद एक दिन उस विप्र कन्या ने राज कुमारी से पूछाकि 'हे सखी ! तुम पुरुष से क्यों द्वष करती हो ?? .... . . राजकुमारी का नर-द्वीप का कारण बतानाः तब राजकुमारी कहने लगी कि “मलयाचल पर्वत के महान Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.