________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित . मेही ने कहाकि “यदि वहां शीघ्र जाने की तुम्हारी इच्छा हो तो मन्त्रीश्वर के साथ इस शय्या पर बैठ जाओ। . इसके बाद शय्या पर बैठा हुआ राजा, मन्त्री के साथ तत्काल ही मेही की आकाश गामी विद्या द्वारा रत्नकेतुपुर के बाहर वाले उद्यान में पहुंचा दिया गया / इसके बाद समुद्र पार करने पर मेही ने राजा से कहाकि “यही वह नगर है। मैं तो पीछी लौट जाऊँगी, तुम अपना कार्य सिद्ध करो।" तब राजा ने कहाकि "मुझको आकाश गामी विद्या नहीं आती है तो फिर मैं अपने नगर को वापस कैसे पहुंच सकूगा ?" तब मेही ने कहाकि 'आप दोनों इस नगर के प्रासादों में सौभाग्य सुन्दरी को देखें / मैं अपने घर जाकर आज से ग्यारहवें दिन में इस वन में, यहीं पर वापस आऊँगी / रत्नकेतुपुर में अरिमर्दन राजा और मंत्री द्वारा वेश परिवर्तन इस प्रकार कहकर मेही चली गई पश्चात् राजा रूप परिवर्तन शील विद्या से अत्यन्त रूपवती कन्या हो गया / मन्त्रीने एक ब्राह्मण का रूपधारण कर के उस कन्या को हाथ से पकड़ लिया। और स्थान स्थान में नगर की मनोहर शोभा को देखता हुआ राजा की सभा में जा पहुँचा और राजा को आशिर्वाद दिया। राजा ने पूछा कि "आप किस स्थान से, तथा किस प्रयोजन से P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak 'Trust