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________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग ग्राम, पर्वत, वन आदि में भ्रमण करता हुआ, वह मन्त्री खिन्न हो रत्नवती नामके नगर में पहुंचा। वहां जिनालय में जाकर श्री ऋषभ जिनेश्वर की स्तुति आदि करके 'मेही' नामके कन्दोई की स्त्री के घर में भोजन के लिये बैठा / मन्त्री का उदासीन मुख देखकर कन्दोई मेही की स्त्री बोली कि. तुम्हारा मुख उदास क्यों है ? अपना दुःख मुझ को कहो / तब मन्त्री ने राजा विषयक अपना सब कार्य कह सुनाया। मेही ने कहाकि 'तुम स्वस्थ हो जाओ, तुम्हारा सब इष्ट सिद्ध हो जायगा। यदि रत्नकेतुपुर जाने की तुम्हारी इच्छा हो तो राजा को कार्य सिद्धि के लिये यहां ले आओ।' . तब मन्त्री प्रसन्न होकर अपने नगर में आया / और राजा से कार्य शुद्धि करने का सब सम चार कह सुनाया / तब राजा प्रसन्न होकर सवालाख मूल्य का द्रव्य लेकर मन्त्री के साथ रत्नवतीपुरी में पहुंच, और मेही से मिला / इसके बाद उसके यहां सन्तोष पूर्वक भोजन आदि किया / __इसके बाद मेही ने कहा कि “वह रत्नकेतु नगर यहां से तीन सौ योजन है / उस नगर के राजा की सौभाग्य सुन्दरी नामकी कन्या मनुष्य से द्वष करने वाली है।" . राजा ने कहाकि "वहां जाने की मेरी इच्छा है इसलिये मुझको वहां ले चलो।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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