________________ . साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जन विजय संयोजित प्रकरण-चालिसवां "राग द्वष जाकु नहीं, ताकु काल न खाय / काल जीत जग में रहो, एहज मुक्ति उपाय // " पाठक गण ! आपने गत प्रकरण में महाराजा अरिमर्दन का स्वप्न में स्वर्ग देखना, शुकराज, राजा व सभाजनों के आगे अरिमर्दन की कथा का कहना, तथा उसी कथा के अन्तर्गत भीम वणिक् द्वारा खरीदी गई चार बुद्धियों की विशेषताओं का तथा संसार के कपटी जनों का परिचय प्राप्त कर चुके हैं / अब आप इस प्रकरण में अरिमर्दन द्वारा मन्त्री की सहायता से रत्नकेतुपुर को जाना तथा उसका कन्यारूप धारण कर वहाँ की राजकुमारी सौभाग्यवती से नर द्वषी होने का कारण पूछना और उसका कारण बताना तथा राजा अरिमदन द्वारा मेही से आकाशगामि शैया को पाने की कथा जानना और अपनी सेना सहित अरिमर्दन का रत्नकेतुपुर पहुंचकर वहाँ के राजा रत्नकेतु से मिलना और म्त्री-द्वष का कारण बताना तथा रत्नावती के साथ अरिमर्दन का विवाह होना आदि रोचक कथाएँ आप इस प्रकरण में पढ़ेंगे मंत्री द्वारा रत्नकेतुपुर नगर हूँढ़ने के लिये जाना इस प्रकार समझाने पर राजा अरिमर्दन ने तीन मास की अवधि मन्त्री को दी / वह मन्त्री रत्नकेतुपुर तथा वहांके राजा आदि का पता लगाने के लिये वहां से चल दिया / बहुत से देश, नगर P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust