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________________ 146 साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित . इधर कोई परदेशी उस नगर में आकर किसी भष्ठी के हाट में, रात्रि में, निर्भय होकर सो गया / परन्तु अकस्मात् शूलरोग हो जाने के कारण वह परदेी वहां मर गया / प्रातःकाल उस हाट का स्वामी अपने घर से आया और वहां किसी मरे हुए आदमी को देखकर सोचने लगा कि 'इसको यहाँ से कौन हटायेगा ?' तब वहां अनेकों आदमी एकत्रित हो गये और कहने लगे कि 'इसको शीघ्र बाजार से हटाओ / ' इस पर हाट का स्वामी कहने लगा कि 'इसकी ज्ञाति मैं नहीं जानता हूं अतः मैं इसका स्पर्श कैसे करू?'' तब महाजनों ने कहा कि 'किसी गरीब को भोजन आदि कुछ देदो तो वह इस मृतक को हाट से खींचकर बाहर कर देगा।' तब सब कोई उस दुकान के मालिक के साथ देवमन्दिर में गये / वहां भीम को देखकर उन लोगों ने कहा कि-'दुकान से एक मृतक मनुष्य को खींचकर तुम बाहर करदो / तुमको इस दुकान का मालिक आज खाने के लिये अच्छा भोजन देगा।' तब वह भीम उन पंचलोगों की बात मानकर, उस मृतक को रस्सी से बांध कर, श्मशान में खींचकर फेंकने गया / वहां उस मृतक के वस्त्र के अचल में चार दिव्य रत्नों को देखा / भीम उन चारों रत्नों को लेकर, सरोवर के कोण में स्नान करने के लिये जाने लगा। जाते समय उसको द्वितीय बुद्धि का स्मरण हो आया और वह घाट से हटकर दूसरे स्थान में स्नान करके श्रेष्ठी के घर पहुंचा। जब भोजन करने के लिये बैठा तब सहसा रत्नों का स्मरण हो P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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