________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग 145 नहीं छोड़ा। तब मन्त्री ने कहा कि-'हे राजन् ! सज्जन व्यक्ति जो कुछ कहते हैं, वह सब प्राणियों के लिये निश्चय रूपेण शुभकारक होता है / जैसे प्रत्येक स्थान में भीम नाम के वणिक् को सुख की प्राप्ति हुई। भीम वणिक की कथा___ श्रीपुर में धीधन नामका एक धनाढ्य श्रेष्ठी था! उसके दूकान में प्रतिदिन अनेक प्रकार की बुद्धि लोगों को मिला करती थी। एक दिन रमापुर से भोम नामका वणिक् प्रयाण करते करते श्रीपुर अया। उस नगर में घूमते घूमते वह धीधन की दुकान में जा पहुँचा / भीम ने वहां जाकर पूछा कि-'हे अष्ठान् ! तुम्हारी दुकान में क्या क्या चीजें बीका करती हैं ? श्रेष्ठी ने कहा कि 'यहां अच्छी अच्छी बुद्धि मिलती है। किराना चीजें यहाँ नहीं बिकती।' चार सौ दाम लेकर श्रेष्ठी ने उसको चार बुद्धियाँ दे दी। प्रथम-चार व्यक्ति जो कहें वह करना, द्वितीय-सरोवर के घाट पर स्नान नहीं करना, तृतीय-एकाकी मार्ग में नहीं जाना, चतुर्थगुप्तबात स्त्री से नहीं कहना / यदि किसी कार्य में बुद्धि न चले तो शीघ्र मेरे पास चले आना। इस प्रकार चार बुद्धियां लेफर भीम उस नगर से चल दिया। घूमते घूमते भूख और प्यास से व्याकुल होकर वह चन्द्रपुरी में जा पहुंचा और उन बुद्धियों का स्मरण करता हुआ, वह किसी देव मन्दिर में जाकर रातको सो गया। Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.