________________ / साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित इसके बाद राजा ने रत्नकेतुपुर नगर और राजा रत्नचन्द्र को देखने के लिए सब दिशाओं में अपने नीजि सेवकों को भेजे / सेवक लोग सब दिशाओं में भ्रमण कर लेने पर भी, रत्नकेतुपुर का पता नहीं पाने से उदासीन मुख होकर राजा के समीप . जौट आये और कहने लगे कि-'हे राजन् ! पृथ्वी में रत्नकेतुपुर नगर आदि का कहीं भी पता नहीं है / ' _____तब राजा ने मन्त्री से कहा कि-'हे मन्त्रिन् ! अब मेरी मृत्यु निकट आगई है / यदि उस नगर का पता प्राप्त न होगा तो मेरे लिये अग्नि की ही शरण है।' तब मन्त्री कहने लगा कि-'हे राजन् ! कुछ काल तक और प्रतीक्षा कीजिये / यदि मैं पृथ्वी में भ्रमण करके छः मास के अन्दर में उस नगर का समाचार नहीं ला सकू तो आप प्राणत्याग देना। इस पर राजा ने कहा कि-'मैं अब नहीं रह सकता हूँ।' तब मन्त्रियों ने समझाया कि किसी कार्य में शीघ्रता करना अच्छा नहीं होता / ऐसा कहा भी है कि-'सहसा कोई कार्य नहीं करना चाहिथे, क्योंकि अविवेक परम आपत्ति का कारण होता है। विचार कर कार्य करने वाले को; गुण की उपासक सम्पत्ति स्वयं ही प्राप्त हो जाय करती है / इस प्रकार समझाने पर भी जब राजा ने अपने दुराग्रह को P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust