________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग तथा स्वर्ग से भी स्पर्द्धा करने वाली, शोभा से युक्त, रत्नकेतुपुर नामका एक नगर है / वहां रत्नचन्द्र नाम के राजा हैं। उनकी स्त्री का नाम रत्नवी है / उनके अत्यन्त सुन्दर और सौभाग्य वाली लक्ष्मीवती नामकी कन्या है / उन चारों के आगे यह नगर तथा यहाँ का राजा आदि उसी प्रकार के हैं जैसे सुवर्ण के आगे अग्नि / क्योंकि जल में और वृक्ष में, पृथ्वी में और पर्वत में, काष्ट में और वस्त्र में, स्त्री में और पुरुष में, नगर में और सुमेरू पर्वत में, महान् अन्तर है / इसी प्रकार इन दोनों नगरों में भी महान अन्तर है / इसलिये यह राजा अपने नगर को देखकर व्यर्थ में ही गर्व करता है।' ___"उत्तम व्यक्तियों को कहीं भी गर्व करना उचित नहीं है / जो मनुष्य जाति, लाभ, कुल, ऐश्वर्य, बल, रूप, तपस्या, शास्त्र इन आठों का अभिमान करता है, तो उसे ये सब चीजें दूसरे जन्म में हीन हो जाती हैं।' यह सुनकर राजा जब उस शुक के समीप पहुँचा, तब तक वे शुकी और शुक राजा की दृष्टि से उड़कर अगोचर हो गये / तब राजा विचारने लगा कि मैंने इतना द्रव्य व्यय करके इस नगर को सुन्दर बनवाया तो भो ये शुक और शुकी इस प्रकार बोलकर क्यों चले गये ? इस प्रकार विचार करता हुआ राजा उदास हो गया / मन्त्रियों ने राजा को उदास देखकर इस का कारण पूछा। तव राजा ने सब वृतान्त कह सुनाया। Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.