________________ 142 साहित्यप्रेमी मुनि निरन्जनबिजय संयोजित राजा ने कहा कि 'मैं अभी कुछ भी नहीं कह सकता हूं।' मंत्री ने कहा कि-'हे राजन् ! यदि कोई दुःसाध्य बात भी हो तो मुझको कहदो मैं उसका उपाय करूगा / ' . राजा कहने लगा कि 'आज मैंने स्वप्न में स्वर्ग देखा है इसलिये द्रव्य का व्यय करके मेरे नगर को स्वर्ग के समान बनाओ। तब मन्त्री ने सूर्यकान्त मणि, चन्द्रकान्त मणि, स्फाटिकरत्न, मरकतमणि आदि के समहों से सब प्रासादों को सुन्दर बनवाया। क्योंकि वेमंत्री शिष्य, सेवक, पुत्र स्त्री, धन्य है जो राजा, गुरु, स्वामी, पिता, पति की आज्ञा का पालन हर्षित होकर करते हैं। उस मन्त्री ने राजा के सात मजिल के प्रासाद के आगे सुवर्ण का घर और मयूर आदि से शोभायमान तोरण बनवाया / एक दिन झरोखे पर बैठ कर नगर की शोभा देखता हुआ। वह राजा अपनी स्त्री से कहने लगा कि-'हे प्रिय ! इस्त्र प्रकार का नगर पृथ्वी पर कहीं नहीं है / ' क्योंकि अपने मन में सब कोई अभिमान करते हैं / जैसे टिट्टिम नामका पक्षी आकाश के गिरने के भय से अपने पांव ऊंचे करके सोता है। राजाकी बात सुनकर तोरण पर बैठी हुई शुकीने शुक पोपट से कहा कि--'हे शुक ! इस प्रकार का रमणीय नगर पृथ्वी पर अन्यत्र तुमने कहीं देखा है।' तब शुकने कहा कि-'हे प्रिय ! श्रेष्ठ रत्नों के प्रासादों से P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust