________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग 141 श्री केवलीमुनि द्वारा अरिमर्दन राजा की कथा- . .. इस प्रकार उत्तम प्रकृति के मनुष्य दूसरों से भी हित वाणी सुनकर शीघ्र ही उत्तम मार्ग को ग्रहण कर लेते हैं / राजा अरिमदन के समान लोग धर्म के प्रभाव से अपने अभिलाषित सुख सम्पति को शीघ्र ही प्राप्त कर लेते हैं / इसी भरत क्षेत्र में पूर्व समय में स्वर्णपुर नाम का एक नगर था / जो गगनचुम्बी श्री जिने श्वर देवों के मंदिरों में समूह से शोभायमान था / उस नगर में अरिमर्दन नाम के राजा थे। उस न्याय परायण राजा को गुणशील आदि रत्नों की खानि लक्ष्मीवती नाम की स्त्री थी / तथा उसको मतिसार नाम का नीति निपुण एक वृद्ध मन्त्री था। जो बराबर राजा का मनोरन्जन करता रहता था जैसे किः "गुरु भूप-मन्त्री वैद्य साधु-सन्त बूढ़ा ही लसे, . मल्ल गायक नृत्य गणिका-विन जवानी ना लसे // " वृद्धावस्था राजा, अमात्य, वैद्य, साधु, इन लोगों को सुशोभित करती है / परन्तु वैश्या मल्ल, गायक तथा सेवक लोकों को वही वृद्धावस्था तिरस्कृत करती है। एक दिन राजा स्वप्न में उत्तम विमान, वन, प्रासाद, सरोवर आदि से सुशोभित स्वर्ग को देखकर जागृत हुआ और अपने मन में सोचने लगा कि 'यदि इस स्वर्ग के समान मेरी . . नगर न हुआ तो मेरा जन्म निष्फल ही व्यतीत होगा। .... प्रातः काल राजा का मुख उदासीन देखकर मंत्री ने पूछ। कि'हे राजन् ! आपको क्या चिन्ता है ? वह मुझको कहो / ' P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust