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________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग 136 क्योंकि 'जब कुमुद समूह शोभा से रहित होते हैं तब कमल समूह शोभायुक्त होते हैं / उलक हर्ष का त्याग करता है, तब चन्द्रवाक् प्रसन्न होता है; सूर्य उदय होता है तब चन्द्र अस्त होता है इस प्रकार एक ही समय में भाग्य संयोग से भिन्न भिन्न व्यक्तियों में भिन्न भिन्न कर्म का परिणाम होता है / ' . चन्द्रने अपने भीम नाम के पुत्र का लक्ष्मीपुर में धीर नामक श्रेष्ठी की कन्या चन्द्रवती से विवाह कराया / तथा धीर श्रेष्ठी ने दीवाली के पर्व में दीपावली क्रीड़ा के लिये जामता-भीमको बुलाने के लिये अपने दूत को भेजा / तथा भीम आभूषणोंको धारण करके अपने समान चार कुमारों के साथ ले जाता हुआ श्रेष्ठी पुत्र लक्ष्मीधर को बुलाने के लिये आया। परन्तु लक्ष्मीधर उत्तम वेष भूषां के अभाव से साथमें जाना नहीं चाहता था / किन्तु भीम ने अत्यन्त आग्रह करके उसको भी साथ ले लिया तथा अतीव प्रसन्नता पूर्वक अपने मित्रों सहित श्वसुर के घर पहुंचा। .. यहां श्वसुर ने भक्ति पूर्वक उत्तम अन्न पान पक्वान्न आदि देकर उन के मित्रों के साथ अपने जामाता को भी सम्मानित किया। वहां वणिक पुत्र भीम अपने मित्र श्रेष्ठी पुत्र लक्ष्मीधर को समय समय पर कार्य करने के लिये कहता था। एक समय उस वणिक पुत्र लक्ष्मीधर को पानी लाने के लिये भेजा। जब वह श्रेष्ठी पुत्र अपने मित्र की आज्ञानुसार पानी लाने को चला तब पीछे से फटे वस्त्र देखकर वह वणिक पुत्र भीम अपने मित्रों के साथ र हंसने लगा / उन लोगों की हंसी सुनकर वह श्रेष्ठि पुत्र Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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